सुबह के टॉप 4 व्यायाम||top 4 morning exercises

        ॐ भूः (ताड़ासन)



 विधिः- धीरे-धीरे श्वास खींचना प्रारंभ करें। दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएँ, दोनों पैर के पंजों के बल खड़े होते हुए शरीर को ऊपर की ओर खींचे। दृष्टि आकाश की ओर रखें। यह चारों क्रियाएँएक साथ होनी चाहिए। यह समूचा व्यायाम ताड़ासन (चित्र नं- 1) की तरह सम्पन्न होगा। सहज रूप से जितनी देर में यह क्रिया संभव हो, कर लेने के बाद अगली क्रिया (नं-२) की जाए।
                            (चित्र नं- 1)  
 लाभ:- हृदय की दुर्बलता, रक्तदोष और कोष्ठबद्धता दूर होती हैं। यह मेरुदण्ड के सही विकास में सहायता करता है। स्नायु तंत्र लचीला बनता है तथा शरीर जकड़न (आलस्य) शीघ्र दूर होतीतत्-(उष्ट्रासन) 
विधि- घुटनों पर रखे दोनों हाथ पीछे की तरफ ले जायें। हाथ के पंजे पैरों की एड़ियों पर रखें। अब धीरे-धीरे श्वास खींचते हुए 'उष्ट्रासन' (चित्र नं-2) की तरह सीने को फुलाते हुए आगे की ओर ऊर्ध्वमुखी खींचे। दृष्टि आकाश की ओर हो। इससे पेट, पेड़, गर्दन, भुजाओं सबका व्यायाम एक साथ हो जाता है।
                           (चित्र नं-2)
लाभः :- हृदय बलवान्, मेरुदण्ड तथा इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना को बल मिलता है। पाचन, मल निष्कासन और प्रजनन-प्रणालियों के लिए लाभप्रद है। यह पीठ के दर्द व अर्द्ध-वृत्ताकार (झुकी हुई) पीठ को ठीक करता है।





                   ॐ भुवः (पाद हस्तासन)

 विधि- श्वांस छोड़ते हुए सामने की ओर (कमर से ऊपर का भाग, गर्दन, हाथ साथ-साथ) झुकना। हाथों को 'हस्तपादासन' चित्र नं. २ की तरह नीचे की ओर ले जाते हुए दोनों हाथों से (चित्रनं- 3) दोनों पैरों के समीप भूमि स्पर्श करें, सिर को पैर के घुटनों से यथासंभव स्पर्श कराने का प्रयास करें (घुटने से पैर मुड़ने न पाए)। इसे सामान्य रूप से जितना हो सकें उतना ही करें। क्रमश: अभ्यास सही स्थिति बनने लगती है।                            (चित्र नं- 3)                                

लाभ :-इससे वायु दोष दूर होते हैं। इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना को बल मिलता है। पेट व आमाशय के दोषों को रोकता तथा नष्ट करता है। आमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी भी कम करता है। कब्ज को हटाता है। रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्त संचार में तेजी लाता है। 







                    भर्गो-(शशांकासन) 

विधि - श्वास छोड़ते हुए कमर से ऊपर के भाग आगे (कमर, रीढ़, हाथ एक साथ) झुकाकर मस्तक धरती से लगायें। दोनों हाथ जितना आगे ले जा सकें, ले जाकर धरती से सटा दें। 'शशांकासन' (चित्र नं-4) की तरह करना है।
                             (चित्र नं-4)                               लाभ:- उदर के रोग दूर होते हैं। यह कूल्हों और गुदा स्थान के मध्य स्थित मांसपेशियों को सामान्य रखता है। साइटिका के स्नायुओं को शिथिल करता है और एड्रिनल ग्रंथि के कार्य को नियमित करता है। कब्ज को दूर करता 


[योग व्यायाम से पूर्व की सावधानियाँ ]

१-शरीर और वस्त्र स्वच्छ रखें।
२-योग व्यायाम शुद्ध हवा में करें, मकान के अंदर करें तो देख लें कि स्थान साफ-सुथरा और हवादार है या नहीं। ३-आसन करते समय किसी का अनावश्यक रूप से उपस्थित होना ठीक नहीं। ध्यान दूसरी ओर खींचने वाली चर्चा वहाँ पर नहीं होनी चाहिए और आसन करने वाले का प्रसन्नचित्त रहना बहुत जरूरी है। प्रात: संध्या स्नान करने के बाद योग व्यायाम करना चाहिए।
 ४-योगाभ्यास करने वाले को यथासमय प्रातः चार बजे बिस्तर से उठने और रात को दस बजे तक सो जाने की आदत डालनी चाहिए।
 ५- भोजन अपनी स्थिति के अनुरूप सुसंस्कारी, स्वास्थ्यवर्द्धक और आयु के हिसाब से नियत समय पर प्रसन्न भाव से करना चाहिए। स्वाद के लोभ से अधिक भोजन हानिकारक है।
 ६-भोजन सादा होना चाहिए, उसमें मिर्च-मसाला न डालें तो अच्छा है। यदि डालना ही हो, तो कम से कम डालें। शाक, सब्जी उबली हुई गुणकारी होती है। आटा चोकर सहित और चावल हाथ
का कुटा लाभप्रद है।
 ७-योग व्यायाम करते समय कसे हुए कपड़े नहीं पहनने चाहिए, ढीले कपड़े ही लाभप्रद रहते हैं। अधोवस्त्र चुस्त पहनना उचित है।
 ८-योग-व्यायाम करने के बाद आधा घंटा विश्राम करके दूध या फल खाये जा सकते हैं। चाय, काफी आदि नशीली चीजें हानिकारक है। 
९- प्रातः या सायं शौच करने के बाद ही योग का अभ्यास करना चाहिए। स्नान के बाद भी कर सकते हैं। किसी भी स्थिति में भोजन के कम से कम तीन घंटे पश्चात् ही आसन करना उचित है।
 १०-अनिद्रा निवारण के लिए शवासन का सतत् भाव पूर्ण अभ्यास करना चाहिए। 
११-आसनों के चुनाव में आगे झुकने वाले आसनों के साथ पीछे झुकने वाले आसन आवश्यक हैं। जिन्हें पेचिश का रोग हो, उन्हें मेरुदण्ड को पीछे झुकाकर करने वाले आसन नहीं करने चाहिए। जिनकी आँखें दुःख रही हों या लाल हों उन्हें शीर्षासन नहीं करना चाहिए। 
१२-योगाभ्यासरत व्यक्ति को ब्रह्मचर्य (संयम) का पालन दृढ़ता के साथ करना चाहिए। योगाभ्यास के तुरन्त ही भारी कार्य नहीं करना चाहिए। योगाभ्यास नियमित रूप से करना चाहिए। ब्रह्मचर्य के लिए स्वाध्याय व सेवा-परायण जीवन बनाएँ। व्यस्त रहें-मस्त रहें। विचार-भावना का परिष्कार आवश्यक है।


Hindi Hub Team

My name is Arjun. Resident of Virbhumi Rajasthan and I am moving ahead in life with the thought of entrepreneurship.

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